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- (१२), करते हुये भाप के दया भाव से नेत्र आर्ट हो गये।
२-श्री महावीर भगवान् ने जो तपस्या धारण कर रखी थी उस का समय अभी पूरा न होने के कारण माप अपने कर्मों के तय करने के वास्ते भनार्य भूमि में चले गये वहां पर भी अनार्य लोगों ने आप को असीम अष्ट दिये जिन के सुनने से रोमांच खड़े हो जाते हैं एक समय जव कि आप पर्वत पर ध्यानावस्था में बैठे हुये थे उन लोगों ने आप को पहाड से नीचे गेर दिया परन्तु पाप अपने ध्यान से विचलित नहीं हुए ।
लर कभी पाप भिक्षा के लिये ग्राम में जाते तो कुत्ते पाप के पीछे लोग लगाते थे । केश लुंचन किए मनिमावि मे प्रहार किए परन्तु श्राप का मन ऐसा दृढ या जो कि देवों से भी चल एमान गहीं हो सकता था इस प्रकार के कष्ट होने पर भी भाप ने उन लोगों पर मन से भी द्वेष नहीं किया लदेव काज यही विचार करते
हो ये कि जैसे प्राणो कम करते हैं उन्हीं के अनुपार फल भोगवे हैं प्रतः जैसे मैंने कर्म किये हैं वैसे ही मैंने