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किया तो उस समय भाप के बड़े भाई ने आपको ध्याना नहीं दी और आप अपने बड़े भाई का हुक्म मानते हुये दो साथ और ठहरे जब आप की अवस्था ३० साल की हो गई तो आप ने अपना राजपाट अपने बड़े भाई को सौंप दिया और अपनी तमाय धन दौलत दान करते हुये अपनी मामा के साधन और पर उपकार के लिये चित्त में ठानी तो यह महानात्मा ने इस प्रकार की वृत्ति धारण की अपने चिच में इस बात को सोचा कि पहले इस से कि मैं किसी और कार्य में लगे यह वेहतर मालूम होता है कि अपनी श्रात्मा को इस तरह साधन करूं कि वह तपस्या रूपी अग्नि से कुन्दन हो जावे इस पर विचार करते हुये उन्होंने कड़ी से कड़ी तपस्या की जो यहां तक थी कि अपने जीवन के १२ वर्ष इस तपस्या रूपी मनजिल के तैं करने में आप को लगाने पड़े दो बार तो आप ने छः मास पर्यन्त अन्न जल नहीं किया चार चार मास तो बाप ने कई वार किये . एक बार जब कि आप ध्यान में खड़े थे तो बाप को एक- संगम- नाम वाला भ्रमन्य देव मिल गया उस ने ६ मास, पर्यन्त आप को भयङ्कर से भयङ्कर कष्ट दिये किंतु
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