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कर किन्तु यथार्थ ही कहने वाला होवे । तथा--जो हर मत वाले असत्कथा करने वाले हैं उन के संग को छोड़ दव या असत्यकथा करने वालों की प्रशंसा भी न गरे पोषि-उन की प्रशंसा करने से अज्ञात जन उन्हों पर विश्वास करने लग जाते हैं तब उसका परिणाम अच्छा नहीं निकलता अतएव ! सिद्ध हासि-सत्कथा "स्वपक्ष युक्त होना यावश्यकीय है तभी गुण आ सकते हैं।
१५-दीर्घ दर्शी- जो कार्य करना हो, पहिले उस को फला फल जान लेना चाहिए जब विचार से काम किया जायगा तब उस में विकृतिपणा उत्पन्न नहीं होता पदि हर एक कार्य में औत्सुक्य ही किया जायगा तो फिर न तो कार्य ही प्रायः मुधरता है और नहीं लोगों में प्रतिष्ठा मिलती है तथा बहुत से कार्य ऐसे होते हैं जिनके करते समय तो अच्छे लगते हैं किन्तु उन का परिणाम अच्छा नहीं निकलता और बहुत से कार्य ऐसे भी हैं जो करते समय तो यश विशेष नहीं मिलता परन्तु परिणाम में उस का नाम सदा के लिए स्थिर हो जाता है क्योंकि जो बुदि काम बिगाड़ करउत्पन्न होती है यदि वह इद्धि पहिले ही उत्पन्न हो