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________________ ( १३० ) 11 अपने ऊपर भपकार करने पाते है पर भी बाँ भाव करने वाला हो-बयोंकि जहां पर दया के भार है वहाँ ही धर्म रह सकता है दया के मान ही नहीं है वो फिर वहाँ पर कुछ भी नहीं है इसलिय 1 सब भीबों पर दया करना ही पुरुषों का लक्षण है किन्तु हिंसा तीन मकार से कपन की मई है जैसे मन, बाछी और कार्य, मन से किसी के हानिकारक मा न करने चाहिये पास से कटुक वचन न बोलना चाहिये, काय मे किसी को बीड़ा न देनी चाहिये जिस के वीमों योगों मे दया माब है वह सर्व प्रकार से दयालु कहा जा सकता है अव दयावान् ही गुणों का भाजन बन गया है। ११ - माध्यस्य- माध्यस्व मार्ग को भरकम्पन करने माला यदि कोई कार्य विपरीत किसी न कर दिया इस को शिक्षा करीता आवश्यक है किन्तु उस ऊपर राग द्वेप न करना चाहिये, क्योंकि मिस नै धनु चित कर्म किया है उसका तो उसन भोगना लेने परन्तु उस के ऊपर रागद्वेष करके अपने कर्म न चाहिय, शिक्षा करना पुरुषों का धर्म है मानना में माना 1
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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