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इस की इच्छा पर निर्भर है इस लिए ! जो श्रेष्ठ गृहस्थ हैं वे सदैव मध्यस्थ भाव का अवलम्बन किया करते हैं
जो
पुरुष माध्यस्थ भाव का अवलम्वन नहीं कर सकते हैं वे धर्म में भी स्थिर भाव नहीं रख सकते है, अगव सिद्ध हुआ कि पाव्यस्थ भाव अवश्य ही अवलम्वन करना चाहिये ।
१२- सौम्य दृष्टि-दर्शन मात्र से ही मानन्दित करने बाला, जिस की दृष्टि सौम्प होती है उस के मस्तक पर क्रोध के नहीं दिखाई पढ़ते इस लिए ! जो उसके दर्शन कर लेता है उस का मन प्रफुल्लित हो जाता हैक्रोध, मान, माया, और लोभ के कारण से ही क्रूरदृष्टि
हुमा करती है जब उस के चारों रूपायों मन्द हो जाती
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हैं तब उस आत्मा को दृष्टि भी सौम्य दृष्टि वन जाती है इसलिए ! यह गुंछ प्रवश्य ही धारण करना चाहिये ।
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१३- गुण पक्षपाधी - गुणों का पक्ष पाव करना चाहिए किन्तु जो कुल क्रम में कोई व्यवहार भा रहा हो किन्तु वह व्यवहार सभ्यता से रहित है तो उस के छोड़ने में पक्ष पात न करना चाहिए तथा यदि मित्र
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