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________________ (१.) अपने उपर भपकार करने पाछे है पनों पर मी का माप करने वाला रे-क्योंकि महाँ पर दया के मारे पहा ही पर्म र सातामा दया मारहो मी वो फिर यहाँ पर इष भी यही है इसलिया पनीरों पर क्या करना पी अपुरुषों का सपण रिम विसा चीन मार से क्या की गई है जैसे मन, पाणी और कांग, मन से किसी रेशनिकारक मार न रमे पाहिये पाणी से पडा पवन म पोजना पारिये, पाय में किसी को पीड़ा न देवी पारिये, निस के वीनों पोगों से पारे भाषा सर्व प्रकार से स्यानु का जा सकता है प्रतएव यापान री एणों का मामन बन पाता है। ११-पापस्व-माप्पस्प भाष को प्रगमन गर्ने वाला परि कोई कार्य विपरीव किसी ने पर दिया है तो स को शिक्षा परमी वा मारपीपलसर पर ग प म करना चाहिये, पोरि मिसन सिमरियारेसा पर पो सिमे पोगा ।' पान उसके ऊपर रागोप करके अपने पर्म नपने पारिय, शिक्षा करमा पुरनों का पर्म है मानना में मामला
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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