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( १०७ ) कूल उपदेश दें तो उसे भी न मानना चाहिए किन्तु यदि देवते भी धर्म से गिगना चाहे तो भी न गिरना पाहिये, अतएव सिद्ध हश्रा शिपाप कर्म करते समय भय मुक्त और धर्म करते समय निर्भीक बनना मुपुरुषों का मुख्य कर्तव्य है। . ७-अशठ-धर्त न होना-जो पुरुष मायावी होते हैं वह भी धर्म के योग्य नहीं होते क्योंकि-माया (छल ) नाम एक मकार श्राभ्यन्तरिक मल है जब तक वह श्रात्मा से निकल न जाये तव तक आत्मा शुद्धि के मार्ग पर नहीं धासकता जैसे किसी रोगी के उदर में मल विकार विशेष स, फिर उस को बल प्रट औषधी भी फलदायक नहीं हो सकती जब तक कि-पल र निकल जाये। जव मल निकल जाता है तब उस का औषधियों का मेवन मुख भद हो जाता है उसी प्रकार जव आत्मा के अन्तामरण से माया रूप मल निकल जाता है तब उसमें भी ज्ञानादि ठीक रह सकते है, इस लिये! सदा चारी पुरुष धृतना से रहित होने चाहिये।
-दाक्षिण्य-निपुणता होनी चाहिये-क्योंकि-जो पुरुष निपुण होते हैं वही धर्मादि क्रियाएं कर सकते हैं