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________________ ‍ श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, नो। एतो जनम जनम दुःख बीनो ॥ सु० ॥ श्रकणी ॥ कुमत कुटल संग डुर निवारी, सुमति सुगुण रस जिनो । सुमति नाम जिन मंत्र सुल्यो है || मोह नींद नइ खीनो ॥ सु ॥ १ ॥ करमपर जंग बक अतिसि जपा, मोह मुढता दीनो । निज गुण जुल रचे परगुण में । जनम मरण दुःख बिनो ॥ सु ॥ २ ॥ छाब तुम नाम प्रभंजन प्रगट्यो, मोह राय कीनो | मुल अज्ञान श्रविरति एतो । मुल जय जयो तिनो ॥ सु ॥ ३ ॥ मन चंचल अति चामक मेरो, तुम गुण मकरंद पीनो । अवर देव सब दूर तजुहुँ । सुमति गुपति चितदीनो ॥ सु ॥ ४ ॥ मात तात तिरीया सुत नाइ, तन धन तरुणा नवीनो । ए सब मोहजालकी माया इन संग जयो मलीनो ॥ सु ॥ ५ ॥ दरसण ज्ञान चारित्र तिनो, निजगुण धन हर ली
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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