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________________ स्तवनावली. ८३ नो । सुमति प्यारी जड़ रखवारी । विष इन्द्री इ हिनो ॥ सु ॥ ६ ॥ सुमति सुमति समता रससागर, आगर ज्ञान जरिनो । श्रातम रूप सुमति संग प्रगटे । सम दम दान वरीनो ॥ सु ॥ ७ ॥ इति ॥ अथ जोयणी मंडन श्रीमन्मल्लि जिन स्तवन. राग. परज. निशदिन जोउं थारी वात - मी घर आवो मारा ढोला ॥ ए देशी ॥ मल्लि जिनेश्वर साहिब तुं तो अंतरजामी ॥ चली ॥ करम सुजटरण - गणे एक निकमे दामी, षटू मित्त प्रति बोधके कीने जगतनिकामी ॥ महि ॥१॥ परउपकारी तुं प्रभु करुणा करं स्वामी । तेरो मुख दीठे मीठे मेरे मनकी खामी ॥ मलि ॥ २ ॥ करम रोगके हरनकुं प्रभु तुं जगनामी, वैद्य धनंतरी मो.मीले त्रिभु-,
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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