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________________ स्तवनावली. ॥ ए ॥ सात वार तुम चरणे आयो, दायक शरण जगत कहीये । अब धरणे बेशी, नाथसे मनवंबीत सब कुछ लहीये | रिषव । १० । अवगुण मानी परिहरस्योतो, श्रादिगुणी जगको कहीये । जो गुंणीजन तारे । तो तेरी अधिकता क्या कहीये ॥ षिव ॥ ११ ॥ श्रातम घटमें खोज प्यारे, बाह्य जटकते ना रही ये तुम अजय अविनाशी । धार निज रूप श्रानंद घनरस लहीये ॥ रिषव ॥ १२ ॥ श्यामनंदी प्रथम जिनेश्वर, तेरे चरण शरण रहीये. | सिद्धाचल राजा । सरे सब काज यानंदरसं पी रहीये ॥ रिषव ॥ १३ ॥ इति ॥ ८ १ अथ सुमतिनाथ स्तवन. नाथ केसे गजको फंद बोमायो । ए देशी ॥ सुमति जिन तुम चरणे चित दि
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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