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________________ ७६ श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, सदा निरखुं ज्यू ॥ लगीलो ॥४॥ तार आतमराम राजा मुक्ति रमणि वरु । श्री शंखेश्वरनाथ जिनवर सुद्धानंद जरुं ॥ लगीलो ॥ ५॥ इति। अथ महावीर स्वामीनुं स्तवन. राग. गोमी. वीर जिनेश्वर स्वामी आनंद कर । वीर । अांचली ॥ मोमन तुमविन कित हीन लागे । ज्युं जामनी वश कामी ॥ था ॥१॥ पतत उधारण विरुद तिहारो। करुणारस मय नामी ॥ श्रा ॥ ॥ अन्य देव बहुँ विधिकर सेवे । कबुय नहीं हुं पामी ॥ श्रा ॥३॥ चिंतामणि सुरतरु तुम सेवी । मिथ्या कुमतकू वामी ॥ आ ॥४॥ जन्म जन्म तुम पदकज सेवा । चाहुं मन विसरामी ॥श्रा ॥५॥ रंना रमण सुरिंद पदचक्रि । वांडं हुं नहीं निकामी ॥ श्रा
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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