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________________ स्तवनावली. ' ॥ ६ ॥ आत्माराम श्रानंद रस पूरण | दे दरसं सुख धामी ॥ श्र ॥ ७ ॥ इति ॥ अथ वीरजिन स्तवन. राग. पंजाबी ठेकानी ठुमरी मैरी सैयां तुं नजर कर वर्धमान । तुं साचो वीर करुणानिधान । मैरी सैयां ॥ श्रांकणी । तेरे हि चरण कमलको मधुकर | वीरवीर मुख रटित नाम ॥ मैरी सैयां ॥ १ ॥ तुम विरहो दुःखम् पुन यारो । मनबल डुबल तनुं कताम ॥ मैरी सैयां ॥ २ ॥ उत्तराध्ययनमे तुम वचराजे | तेही श्रा लंबन चितमें ठाम ॥ मैरी सैयां ॥ ३॥ तुम विन कोन करे मुज करुणा धाम ॥ मैरी सैयां ॥ ४ ॥ करुणादृग जरी तनुं कज निरखो । पामुं पद जीम आत्मराम मैरी सैयां ॥ ५ ॥ इति ॥
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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