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________________ स्तवनावली. IN ओर सांग टरें ॥ तुं ओर नहीं ॥ ४ ॥ तुड़े भूपवरा शंखेश खरा । में तो आतमराम आनंद जरा ॥ तुम दरस करी सब चांति हरी ॥ तुं श्रोर नहीं ॥ ५ ॥ इति ॥ अथ शंखेश्वर पार्श्वजीन स्तवन. राग. सोरठ. लगीलो वामानंदनस्युं ॥ नरम जंजन तूं ॥ लगीलो ॥ श्रकणी | जाय सव धन जाय वामा प्राण जाय न क्युं ॥ एक जिनजीकी प्राण मेरे रहोने ज्युंकी त्युं ॥ लगी लो ॥ १ ॥ नहि तप वल नांहि जप वल शुद्ध संयम त्युं । एक प्रभुजी के चरण शरणां त्रांति जांजी कल्पुं ॥ लगी लो ॥ २ ॥ घट अंदरकी जाने तुं जिन कथन करनेशूं | देख दीनदयाल ॥ मुजको तार जगसें त्यूं ॥ लगीलो ॥ ३ ॥ इंद्रचंद्र सुरींद्र पदवी कोन वांहुं हुं । एक तुम डीग करुणा जीने
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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