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________________ ७४ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, अज चिद धनरासी, आनंद घन प्रभु आत्मराम ॥ तोरी ॥ ५ ॥ इति ॥ अथ शंखेश्वर जिनस्तवन. राग. नेरवी. मेगजल. मुख बोल जरा यह कह देखरा, तुं ओर नहीं में ओर नहीं ॥ मुख ॥ श्रांचली ॥ तुं नाथ मेरा मेंहुं जान तेरी, मुजे क्युं विसराइ जान मेरी ॥ जब करम कटा ओर नरम फटा ॥ तुं ओर नहीं ॥ १ ॥ तुंदे इश जरा मेंहुं दास तेरा ॥ मुजे क्युं न करो, अब नाथ खरा ॥ जब कुमति टरे ओर सुम-ति वरें ॥ तुं ओर नहीं ॥ २ ॥ तुंदे पास जरा में हुं पास परा ॥ मुजे क्युं न बो- - डावो पास टरा | जब राग कटे ओोर द्वेष मिटे ॥ तुं ओर नहीं ॥ ३ ॥ तुंहे अचरवरा में चलनचरा मुजे । मुजे क्युं न बनावो आपसरा ॥ जब होंश जरे
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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