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________________ स्तवनावली. ७ १ तो काल पंचम वस श्राये, तुमारो शरण जिनेश नाम ॥ मोरी ॥ ३ ॥ संयम तप करने शुद्ध शक्ति, न धरुं कर्म जकोर ; पाम ॥ मोरी ॥ ४ ॥ आनंद रस पुरण सुख देखी आनंद पुरण आत्मराम ॥ मोरी ॥ ५ ॥ इति ॥ 3 अथ महावीर स्वामीनुं स्तवन. राग. वसंत. सिंध काफी. रे सुन वीर जिनंदा चरण शरण ल्युं तेरा ॥ सुन ॥ आंचली ॥ कामक्रोध मदराग अग्याना, लोन द्वेष मोह चेरा । मायाकुं रांडी मदयुत सांगी, इन दीनो मुजे घेरारे ॥ सुन ॥ १ ॥ मन वचन तनुसें करत याकपेन, वाम रस नेरा । सब धन दादे कर रोगको, रंजीतपर गुण केरारे ॥ सुन ॥ २ ॥ संका कंखा जांति वढावे, ममता श्रश घनेरा । अप्रिती करे बिन ·
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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