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________________ पुल श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, रसकस पीके, शिखीवत नविजन नाच करंद । वीरजिन ॥५॥ तपत मिटी तुम वचनामृतसे, नासे जनम मरण पुःख फंद । अक्षपरे तुम दरस करीने, पतैद मानूं हुं जीनचंद ॥ वीर जिन ॥३॥ अरज करतहुं सुन नयनंजन, रंजन निज़ गुन कर सुखकंद ॥ त्रिसला नंदन जगत जयंकर, कृपा करो मुज श्रात्मचंद ॥ वीरजिन ॥४॥इति ॥ . अथ श्रीशंखेश्वर पार्श्वजीन स्तवन. . राग. पंजाबी ठेकानी तुमरी. मोरी बैयां तो पकर शंखेश स्याम, करुणा रसजरे तोरे नैन स्याम ॥ मोरी॥ आंचली ॥ तुम तो तार फणींदलग साचे, दमकुं वीसार न करुणा धाम ॥ मोरी ॥१॥ जादवपति अरति तुम कापी, धारित जगत शंखेश नाम ॥ मोरी ॥॥ हम
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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