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________________ स्तवनावली. ६ जलम जरी ॥ विर ॥ १ ॥ बावीस कुमति पूत हविले, नाठे मदसें गरी, दोज सुजट जर मूरसें नासे, बुढ्यो मदन मरी ॥ विर ॥ २ ॥ महानंद रस चाखत पायो, तनमन दाह वरी, अजरामर पद संग सुहायो, जव जव तापहरी ॥ विर ॥ ३ ॥ सिव वधु वसी करणको नीकी, तीनो रत्न धरी, तम आनंद रसकी दाता, वीर प्रभु दान करी ॥ विर ॥ ४ ॥ इति ॥ अथ महावीर स्वामीनुं स्तवन. राग. श्री. वीरजिन दर्शन नयनानंद. वीरजिन ॥ चली ॥ चंद्रवदन मुख तिमिर हरे जग, करुणा रस हगजरे मकरंद | नीलांबुज देखी मन मधुकर, गूंजे तूंही तूंही नाद करंद ॥ वीर जिन ॥ १ ॥ कनक वरण तनु जवि मन मोहे, सोढ़े जीते सुर गनवृंद | मुखश्री अमृत
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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