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________________ ७५ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, कमें जनको, दीयो गति चार वसेरारे ॥ सुन ॥३॥चारित्र राजको त्रास दीये नितु, निज गुन दावे मेरा ॥ सद थागम संतोष सुरंगा, सम्यग दरसन मेरारे ॥ सुन ॥ ४ ॥ हुकम करो करे सानिध मेरी, नासे नरम अंधेरा । श्रात्म यानंद मंगल दीजे, हुँ जिन बालक तेरारे ॥ सुन ॥५॥ इति ॥ अथ शंखेश्वर पार्श्वजीन स्तवन. राग. कालींगडो. पास प्रजुरे तुम हम शिरके मोर ॥ पास ॥ टेक ॥ जो कोइ. सिमरे शंखेश्वर प्रचुरे, डारेगा पापनी चोर ॥ पास प्रनु ॥१॥ तुं मनमोहन चिदघन खामीरे, साहेब 'चंद चकोर ॥ पास प्रनु ॥॥ त्युं मन विकसे नविजन केरारे, फारेगा कर्महींमोर ॥ पास प्रजु ॥ ३ ॥ तुं मुज सुनेगा दिलकी बा
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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