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श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत,
डुर्जर क्षण खय जावेरे ॥ चेतन ॥ ६ ॥ बंधन गये तुंब ज्यूं जल में । बिनक में उहि श्रवे । तम निर्मल सुध पद पामी । जनम मरण मिटावेरे ॥ चेतन ॥ ७ ॥ ॥ इति निर्जरा जावना ॥
२.४
अथ दशमी धर्मभावना.
॥ राग माढ ॥
चेतनजी थाने धर्मनी जावना दाख जी महाराज हो चेतन जी । आँचली । धर्म जिनंद बताया जी महाराराजरे कां जेहने श्रालंबी हे जीरे कांइ जेहने लंबी । जवोदधि में न रुबायाजी महाराराजरे ॥ चेतन० ॥ १ ॥ संयम सत्व सुहाया जी महाराराजरे कांइ ब्रह्मअकिंचन तप सुचि सरल गिनायाजी महाराराजरे ॥ चेतन० ॥ २ ॥ मांख मार्दव मुक्तिजी महाराराजरे कांइ दस