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वादश नावना.
meroeiwwwmarwa विध धर्मो वीरजिनंद सुनाया जी महाराराजरे ॥ चेतन ॥३॥ नरक पडता राखेजी महाराराजरे कांश तीर्थकर पद धर्म थकी जगपायाजी महाराराजरे ॥ चेतन ॥४॥ संकटमे सुख आपेजी माहाराराजरे कां आतमानंदी धर्म अतिसुख दायाजी माहाराराजरे॥चेतन॥५॥
॥ इति धर्मजावना ॥
अथ एकादशमी लोकस्वरूप
नावना। ॥ राग जन्द काफी ॥ नवि लोक स्वरूप समररे सम ॥ श्रांचली॥ कटि धरि हाथ चरण विस्तारी। नर आकृति चित धररे । षमअव्य पूरणलोक समरले उपजत बिनसत थिररे ॥ जवी० ॥ १ ॥ त्रिजुवन व्यापक लोक विराजे ॥ पृथवी सात सुधररे । घनोद