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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत,
जिनंद ॥३॥खम मृछ सरल अनीहा सेती क्रोध मान बल थानी । लोन ए चारो क्रम से रुन्धे तो कहीए शुज ध्यानी ॥ जिनंद ॥४॥ करे असंयम अ. ढता जिनकी ते विषयों विषमानी।३छिय संयम पूरन सेवी करे जर मुर सें हानी ॥ जिनंद ॥ ५॥ तीन गुप्तिसे योगको जीते हरे परमाद कुरानी। अपरमादे पाप योगकुं बिरती से सुख जानी ॥ जिनंद ॥६॥ सम्यग् दरससे मिथ्या जीती थारत रौहि धानी। धीर चीत करीने जीत चिदानंद श्रातमपद निर्वानी॥ जिनंद ॥७॥
॥ इति संवर नावना ॥ अथ नवमी निर्जरा नावना ।
॥राग कमाच ॥ मुर्मति मारदे मेरे प्राणी उरमति ॥
॥ए देशी ॥ ॥ चेतन निर्जरा जावना जावेरे ॥