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बादश नावना.
रौडी पापकरे सुखहानारे ॥ आश्रव० ॥ ॥५॥ श्रात्म सदा सुहंकर निर्मल जिन वच अमृत पानारे ॥करके जीवे सदा निरंगी पामे पद निरवानारे।श्रावै॥६॥
॥ इति श्राश्रव नावना ॥
अथ आठमी संवर नावना
॥राग विहाग ।। जिनंद वच संवर सुनरे सुझानी ॥ आंचली ॥ सब आश्रव को आवत रोके संवर जिनवर बानी । सो नी दोय नेद सें वरन्यो अव्यनाव सुख दानी ॥ जिनंद ॥१॥ करम ग्रहण का बेद करे जो संवर दरब विधानी। नव हेतु किरिया जो त्यागे नाव संवर सुख खानी ॥ जिनंद ॥२॥ जिस जिस कारण सेती रुंधे थाश्रव जल पथ पानी । ते ते उपाय निरोध के तांश जोडे पंमित ज्ञानी ॥