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चतुर्विशति जिनस्तवन.
राग संध्या बिन रही। चक्रीहलधर संख भृतजन देख सुपना रैनका । कोश्न थिरता जान अब मन आसरा जिन बैन का ॥१॥ साहमह की वासना मन ज्ञान दरसन मे लिया । याम सुमति तप कुगरे करम बिक्षक बेलीया । जार के सब मदन वन घन मोखमार्ग फैलीया । अब देखचंग अखंम राजल नेम होरी खेलीया ॥ ११॥ सील सज तनु केसरी पिचकारीयां सुन नावना । ज्ञान मादल ताल सम रस रागसुध गुण गावना । धूर. ऊडी करमकी सव सांग सगरें त्यागीया। नेम आतमराम का धरिध्यान शिव मग लागिया ॥ १५ ॥ इति श्री नेमनाथ जिनस्तवनम् ॥१५॥ श्री पार्श्वनाथ जिनस्तवन ।
· राग वढंस ॥ मूरति पास जिनंदकी सोहनी। मोहनी