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३७ श्रीमविजयानंद सूरि कृत, जगत उधारण हारी ॥ मू॥ श्रांकणी ॥ नील कमल दल तन प्रजु राजै।साजे त्रिजुवन जन सुखकारी । मोह अज्ञान मान सबदलनी। मिथ्या मदन महा अघजारी ॥ मू ॥१॥ हूं अति हीन दीन जगवासी।माया मगन नयो सुझबुक हारी। तोविन कौन करे मुफ करुणा । वेगालो अब खबर हमारी॥ मू० ॥२॥तुम दरसन विन बहु मुख पायो । खाये कनक जैसे चरी मतवारी। कुगुरु कुसंग रंगवस जरऊयो । जानी नही तुम जगती प्यारी मू॥३॥ आदिअंत बिन जग नरमायो। गायो कुदेव कुपंथ निहारी। जिन रसोर अन्यरस गायो । पायो अनंत महा सुख नारी ॥मू॥४॥ कौन ऊधार करे मुक केरो श्री जिन विन सहु लोक मकारी। करम कलंक पंक सब जारे। जो जन गावत लगतिं तिहारी ॥ मूग ॥ ५ ॥ जैसे चंद