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श्रीमं विजयानंदसूरि कृत,
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कारे कुगुरु पितरा हमरी गत तुम कीजीये | जव्य ब्राह्मण खीर जिनवच चाखीये रस पीजीये । कुगुरु खाली हाथ बैठें पाये नरजव खोय के । पूजो दसहरा धरम दस विध ज्ञान दरसन जोय के ॥ ७ ॥ कार्तिक दीवाली ज्ञान दीपक जरम तिमर उमाश्या । अब ज्ञानपंचम निकट आई - करण त्रिकसुद्ध पाइया । अष्टदृष्टि जोगसाधी जावनात्रिक नाश्या । अब जश् कुमति तप्त डूरी सीत जिन वचपाश्या ॥ ८ ॥ मगसर जये सब बार ममता जानमहा दुख रासीया । सुत त्रात जाता मित्र जननी जान महा दुख फासिया । कोई न तेरा मीत दुरजन सन संगी हित करो । इक नेम चरण आधार शिवमग आस मन मांही धरो ॥ ए ॥ पोषे तनु परिवार पर जनमित तेरे हैं नही । तमित दमक जू कान करिवर
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