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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत,
मराम रमणजग स्वामी । कामत फल
वरदाइ ॥ ता० ॥ ॥ इति श्री नमिनाथ जिनस्तवनम् ॥ २१ ॥
श्री नेमिनाथ जिनस्तवन. चैतमे सोदाग सहियां फूलीयो सब रूपमें | ज्ञान फूल चारित फल जर | लागीयो चिद रूप में । पुन्य योवन चस्वो नीको। करण पंचस नूरीयां | अब देख नेम वियोग सेती । जये बिनक में दूरीयां ॥ १ ॥ वैसाख तामस ऊठीयो सब फूल फल मुरजाश्या । चित दाह भस्मीभूत कीनो शांतिरस सुसाइया । मन सैल राज कठन कीनो दंज नागन धाइयां । अब प्यास शांत न होत किम ही त्रिभुवन धन जल पाइयां ॥ २ ॥ जेठ जागी कुगुरु वायु अंधीयां बहुं आश्यां । तन मन सबी मलीन कीने । नयन रज बहु बाइयां ॥ कतु आप पर की सूज
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