________________
चतुर्विशति जिनस्तवन. corronominen ॥४॥ षट काया रदा दिलगनी॥जि॥ निज श्रातम समकानी रे। पुदगलीक सुख कारज करणी ॥ जि ॥ सरूप दया कही ज्ञानी रे ॥ न ॥ ५॥ करि आमबर जिन मुनिवंदे ॥ जि ॥ करी प्रनावना मंडे रे। विन करुणा करुणा फलनागी। जन्म मरण मुख बंडे रे ॥ नन ॥६॥ विधिमारग जयणाकरीपाले ॥ जि० ॥ अधिक हीन नही कीजे रे । बातमराम आनंद धन पायो ॥ जि ॥ केवल ज्ञानलहीजे रे ॥ न ॥७॥ इति श्री धर्मनाथ जिनस्तवनम् ॥ १५ ॥
श्री शांतिनाथ जिन स्तवन । नविक जन नित्य ये गिरिवंदा।। ए देशी ॥
नविक जन शांतिहे जिन वंदो । नव नवना पाप निकंदो । नविक जनशांति हे जिन वंदो ॥१॥ पूरव नव शांति करीनो । कापोत पाल सुख लीनो ।