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________________ २४. श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत . श्री धरमनाथ जिन स्तवन । है, . , माला किहां जैरे ॥ए देशी ॥ - नविकजन वंदोरे धरम जिनेसर धरम खरूपी। जिनंद मोरा ॥ परमधरम परगासैरे । परमुख नंजन जविमन रंजन। जि० ॥ हादस परषदा पासे रे । जविक जनवंदो रे।धरम जिनेसर वंदो परमसुख कंदो रे ॥१॥ धरम धरम सहुजन मुख नाषै ॥ जि ॥ मरम न जाने को रे। धरम जिनंद सरण जिन लीना॥ जिं॥ धरम पिबाणे सो रे ॥ न ॥२॥ दरव १ नाव ५ खदया ३ मन आणो ॥ जिा पर ४ सरूप ५.अनुबंधोरे ६ व्यवहारी निहचे गिनलीजो ॥ जि ॥ पालोकरम न बंधो रे ॥ज॥३॥ जयना सर्व काममे करणी ॥.जि ॥धरमदेसना दीजे रे। जिन पूजा यात्रा जगतरणी॥ जि० ॥ अंतःकरण शुरू बीजे रे ॥ज॥
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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