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________________ २६ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, करुणा रस सुध मन नीनो । तेतो अजयदान बहु दीनो ॥ ज० ॥२॥ श्रचिरानंदन सुखदा । जिन गर्नेशांति करा।सुरनर मिल मंगल गा।कुरु मंडन २ मारिनसा ॥ ज० ॥३॥ जगत्याग दान बहुदीना । पामर कमला पति कीना । सुझपंच महा व्रत लीना। पाया केवल ज्ञान अश्ना ॥ न०॥४॥ जग शांतिक धरम प्रगासे । नव नवना अघ सहु नासे । सुकशान कला घट नासे । तुमनामे अरे २ परम सुख पासे ॥ नण ॥५॥ तुमनाम शांति सुख दाता । तुं मात तात मुऊ जाता । मुऊ तप्त हो गुण ज्ञाता । तम शांतिक अरे २ जगत विधाता ॥ ज० ॥५॥तुम नामे नव निधलहिये। तुम चरण शरणगहि रहिये। तुम अर्चन तन मन वहिये । एही शांतिक अरे ५ जावना कहिये ॥
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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