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________________ चतुर्विंशति जिनस्तवन. रतन बहु नूर कूर मन फंद लगाये। रंजा रमण थनंग संग बहु केल कराये। संध्या रंग विरंग देख बिनमे विरलाये ॥२॥ पदम राग सम चरण करण श्रति सोहे नीके । तरुण अरुण सित नयण वयण अमृत रस नीके।वदनचंद ज्यूं सोम मदन सुख माने जीके । तुज नक्ति विन नाथ रंग पतंग जूं फीके ॥३॥ गजवर तरल तुरंग रंग बहु नेद विराजे ॥ कंकण हार किरीट करण कुंडल अति साजे ॥ राग रंग सुख चंग लोग मन नीके नायो । तुकनक्ति बिन नाथ जान तिन जनम गमायो ॥ ४ ॥ रतन जरत विमान नान जूं नये सनूरे । रंना रमण आनंद कंद सुख पाये पूरे । खोमस नित्य सिंगार नाच स्थिति सागर पूरे। जिनन्नक्ति फल पाये मोक्ष तिन नाही रे ॥५॥ धन धन तिन अवतार धार जिन जक्ति सुहानी। दया दान तप नेम सील गुण मनसोगनी ॥
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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