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________________ २. श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, सिकांत प्रमाण करण मन मामीये ॥५॥ एक अरज मुफ धार दयाल जिनेसरू । उद्यम प्रबल अपार दीयो जग ईसरू ॥ तुक विन कौन आधार नवोदधी तारणे। विरुद निवाहोराज करमदल वारणे ॥६॥ आतमरूप जुलाय रम्यो पर रूप में । पस्यो हूं काल अनादि नवोदधि कूप में । अब काढोगही हाथ नाथ मुफ वारीया ॥पा परमानंद करम रज जारीया ॥७॥ इति श्री वासपूज्य जिन स्तवनम् ॥ श्री विमल नाथ जिन स्तवन । सुंदर चेत वहार सार पाल सरफूले । ए देशी। विमल सुहंकर नाथ आस अब हमरी पूरो । रोग सोग नयत्रास आस ममता सब चूरो । दीजो निरनय थान खान अजरामर चंगी। जनम जनम जिनराज ताज बहु नगत सुरंगी॥१॥ मात तात सुत जात जान बहु सजन सुहाये। कनक
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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