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स्तवनावली. २०१ हुवागणधारी शंका निवारी । प्रजुजीये त्रिपदी श्रालीरे ॥ गुरु ॥२॥ चौद पूरवकी रचना कीनी । जगजश कीरती लीनीरे ॥7॥३॥ लब्धिबलिया श्रष्टापदच मिया । वीरवचन रसन्नरियारे॥॥॥ गुरुजी जात्रा करके वलिया। पन्नरसें तापस मलियारे ॥ गु॥५॥संजम लेवाविनती कानी ।गुरुजीयें दिदादिनार॥गु॥६॥ वीर प्रजुका दरिशण चलिया । केवल लदमी वरियारे॥7॥७॥ एम अनेक शिष्यकुं तारी।ए गुरुकी बलहारी॥3॥॥ सखियां सघली गुहली गावे।गौतम खामीकी नावें रे॥7॥ए॥ वीर प्रजुका राग निवारी श्रातम एकता धारीरे॥ गु॥१॥ केवल पा मोदपद पाया। पृथवीमाताका जायारे ॥7॥१९॥ ओगणीसें समसहसंवत् पाया । दीवाली दिन आयारे ॥ गु॥१॥ वीरविजय गौतम गुण गाया। बीकानेर जब आयारे ॥गु ॥१३॥ इति समाप्ता ॥