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________________ २०२ श्रीमद्दीरविजयोपाध्याय कृत, ॥ अथ अंतरिक्षपार्श्वनाथ स्तवन ॥ मतिविसरोपाश जिनेश्वरकुं मतिविसरो । मतिविसरो अंतरिक्षपारशकुं ॥ मति ॥ श्रकणी ॥ अश्वसेनवामाजीकेनंदा | चरणसेवेचौसठइंदा ॥ मति ॥ १ ॥ श्रासनधारे अधर जिणंदा । पंचमकालमे - सुखकंदा ॥ मति ॥ २ ॥ सोदेअंतरिक्षपाश जिणंदा | ज्युंगगने सुरजचंदा ॥ मति ॥ ३ ॥ चमतकार चौदिशमेंचंका | आशपूरणसुरतरुकंदा ॥ मति ॥ ४ ॥ ज्यु - कमला दिलमेंगोविंदा | ज्युंचकोरमनमेंचंदा ॥ मति ॥ ५ ॥ त्युंमुजमन में पाश जिगंदा । नित्यरहोहरोडुखदंदा ॥ मति ॥ ॥ ६ ॥ जाग्यहीनप्रमें मतिमंदा । नजरकरोजिनवरदा ॥ मति ॥ ७ ॥ रतनपुरीमालवमे सोहंदा | शेवकुंगरसीगुणकंदा ॥ मति ॥ ८ ॥ संघनिकालाष आनंदा । पुन्यवान्परगटबंदा ॥ मति ॥ ·
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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