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स्तवनावली.
१ एए
रता रे । भेदाभेदनो जंग ॥ गु ॥ ५ ॥ तत्वातत्वने खोजतारे । खेंचता निज सुखचंग ॥ गु ॥ ज्ञान क्रियारस जिलतारे । मनमे धरिय उमंग ॥ गु ॥ ६ ॥ करी उपगार भूमंगलेरे । लीधो लाज अनंग ॥ गु ॥ त्र्यापतस्या पर तारिनेरे । स्वर्गिय - या सुख कंद ॥ गु ॥ ७ ॥ पुन्यसंयोगे पामीये रे । एहवा गुरुनो संग ॥ गु ॥ वीरविजय कहे गुरु तणोरे । रहे जो अविचल रंग ॥ गु ॥ ८ ॥ इति समाप्ता ॥
अथ गुदली ॥
कंगना खुलदानही महाराय ॥ एचाली ॥ विजयानंदसूरि महाराय | जिनके नामसें मंगल थाय । वि ॥ श्रकणी ॥ समता सागरके विसरामी । कंचनकामनिके नहीं कामी । नामी सब पुनियांमे थाय ॥ वि ॥ १ ॥ संजम मारगमे वहुरागी । बोमपरिग्रह जये वैरागी ॥