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________________ स्तवनावली. वारे यात्रा कीधी ॥श्री ॥ १५॥ यात्रा करी आनंद लीया । नरनव बहुसफला कीया । आतम आनंद रसलीया। कहेवीर विजय नरपीया ॥ श्री॥ १६ ॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्रीदस्तिनापुरस्तवन ॥ राग पीलु ॥ चलोरीचलो तुम चमते रंगे। तीरथ जात्रा करो मन रंगे। तीरथ जात्रा जिनवर नांखी। इन बातनमे शास्त्र हे शाखी ॥ च ॥ १॥ जिनवर कल्याणिक जिहां थावे । तीर्थकर तीरथ फरमावे । जैन तीरथकी महिमा जारी। सबजिवनकुं हे हितकारी॥च ॥॥ हथिणापुरमे हरष घनेरा । बादश क-' व्याणिक हे चलेरा । शांति कुंथु अरजिनवर केरां। दरश करनसें कटे नवफेरा ॥ च ॥३॥ तीरथ जात्रा विधिशं कीजे
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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