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________________ १७६ श्रीमधीरविजयोपाध्याय कृत, मनुष्य जनमका लाहालीजे । धरम करनमे देरीन कीजे । अमृत रससोही कटपटपीजे ॥ च ॥ ४ ॥ ए तीरथकी महिमा जारी। सुनके संघने किनी त्यारी। शहेर अंबालासें संघ चलियो। मनमोहन मानु मेलो मलियो ॥ च ॥५॥ श्रावक जन सब संघकी सेवा । करता न. क्ती शीवसुख लेवा । अनुक्रमे हथिणापुरमे आया। धवल मंगल थानंद वरताया ॥ च ॥६॥ षुरस निधि खुवत्सरमे । चैत मास के कृसपक्षमे। करम वाटी-पंचमी दिन आया । जात्रा करी सब थानंद पाया ॥ च ॥७॥ तीरथ सेवा नित्य नित्य कीजे । फेर संसार मे नाही जमीजे । वीरविजय कहे सुकृत कीजे । श्रातम. यानंद मुजको दीजे ॥ च ॥७॥ .' इति हस्तिनापुर स्तवन संपूर्ण ॥
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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