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________________ १७४ श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत, न्यारी । चमके सकल नरनारी ॥ श्री ॥ ए ॥ री नंजा वजडावे । तब संघसकल मिल श्रावे।गौरी मंगल गवरावे। सबजन चडते जावे ॥ श्री॥ १० ॥उंगणिसें त्रेस जाणो । मगसर शुदि नवमी वखाणो । शनिवारने सिझी जोगे । संघ निकसे सुख संजोगे ॥ श्री ॥ ११ ॥ सपादशत शकटानी । हस्तिघोडे गुलतानी । शेठ साहुकारने पाला । संघलोक घणा मसराला ॥ श्री ॥ १५॥ सूरि विजय कमल गुणदरिया । एकादस मुनिपरिवरिया । उपदेस करे गुणरागी। जाके धरम वासना जागी ॥ श्री ॥ १३॥ है चैत्य प्रकासंगे। संघ दरिसण' करे म.. नरंगे। ऐसी विध संघकी जाणो। फेर नहीं मिले एहवो टाणो ॥ श्री ॥ १४ ॥ अनुक्रमे चंपामे आया। उँगणिसे त्रेस नाया। पोसवदि एकादशी लीधी । बुद्ध
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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