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श्रीमधिरविजयोपाध्याय कृत,
श्रातम थानंद बापो जिनवर रायाजी ॥ नव ॥७॥ .
शति स्तवन संपूर्ण ॥ ॥ अथ सन्नखतरामंडन धर्मनाथ
स्तवन ॥
राग कानडा ॥ और न ध्याउं में और न ध्याउं॥धरम जिणंदसें लगन लगाऊं ॥ ध्यान अगनसे करम जलाउं ॥ बिनमें परमातम पदपाउं ॥ और॥१॥लोह पारशको संगमपाई। हेमरूप धारत मेरे नाई॥नजले धरमनाथ एक वारा॥श्रातम हित करले तूंप्यारा॥
औ ॥श्न विन और देव नहीं पूजो॥ विधिसे धरम जिणंदकुं पूजो ॥ मनमें ध्यान धरो एक धारा । कामित फलके देवनहारा ॥ औ ॥३॥ नूत.मंदिर
आप पधारो ॥ एही सेवक अरजी अवधारो ॥ घंटारव नोबत जब-गाजे ॥ तब