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स्तवनावली.
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सेवकको ध्यानंद जागे ॥ श्रौ ॥ ४ ॥ पुरव पुन्ये दरिशण पायो ॥ जब में देम - नगरमें आयो ॥ वीरविजयकी विनती एही ॥ श्रतम आनंद मुजको देही
॥ श्रौ ॥ ५ ॥
इति श्री धर्मनाथ जिन स्तवन ॥
॥ अथ श्री हुशियारपुरमंडनवासुपूज्य जिन स्तवन ॥
राग कमाच ॥
आज दुविधा मेरी मिटगई ॥ ए देशी ॥ वासुपूज्य जिनराज आज मेरो मन हरलीनोरे ॥ कणी ॥ वासववंदित पदकजद्वंद ॥ वसुपूज्य राजाके नंद ॥ नविक कमल विकासीचंद ॥ तनूरक्तरंगीलोरे ॥ वा ॥ १ ॥ कामित पूर सुरतरुकंद ॥ कठिन करमका काटे फंद ॥ अरज करूं अति जाग्य मंद ॥