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________________ स्तवनावली. १५१ श्रावे पूजा प्रांगी रचावे । नवखंमाजी नामसमरतां । पूरण परवा पावेजी ॥ नव ॥१॥ अश्वशेन वामा सुत केरी मू रति मोहन गारी। चंद्र सूरज श्राकाशे चमिया तुमरे रूपसे हारीजी ॥नव ॥ २॥ मुखने मटके लोयण लटके मोह्यां सुरनरकोडी। और देवनकुं हम नहीं ध्यावें एम कहे करजोमीजी ॥ नव ॥ ॥३॥ तूं जगवामी अंतर जामी श्रातम रामी मेरा । दिल विसरामी तुमसें मांगु । टालो नवका फेराजी ॥ नव ॥४॥ कल्पवृक्ष चिंतामणि आशा पूरे नहीं जडनाषा ॥ तीन जुवनके नायक जिनजी ॥ पूरो हमारी आशाजी ॥नव ॥५॥ दायक नायक तुम हो साचा और देव सब काचा । हरिहर ब्रह्म पुरंदरकेरा जूठे जुक तमासाजी ॥ नव ॥६॥ नटकनटक घोघा बंदरमे दर्शन कुर्लन पाया । वीरविजय कहे
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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