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वीरविजयोपाध्याय कृत,
दाया। जग बहु उपकार कराया। नवखंगा नाम धराया। में सुणकर शरणे आया । उकार करो महाराया ॥ ५ ॥ ४॥ हुवा चतुर मास मुजे आयां । किसकारण अब बेहाया । यो मन वंडित सुखदाया। हुं प्रेमे प्रणमुं पाया। सेवकका काज सराया ॥ घ॥५॥ शरयुग निधि इंछ कहाया । जला श्राश्विन मास सोहाया ॥ दीवाली दिन जब थाया। में श्रातम थानंद पाया। एम वीर विजय गुण गाया ॥ १ ॥६॥
इति समाप्तं ॥ ॥ अथ नव खंमा पार्श्व जिन
स्तवन ॥ नवखंमा खामी। आप बिराजो घोघा शहेरमे ॥ हांहारे घोघा शहेरमें ॥ नव ॥ श्रांकणी ॥ देश देशके यात्री