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स्तवनावली.
१धए
पट्टी के स्वामी। अब तो न रखो खामी। वीरविजे गावदांजी ॥क ॥५॥
इति स्तवन संपूर्ण ॥ ॥अथ श्री घोघा मंडण नव- .
खंडापार्श्व जिन स्तवन ॥ घनघटा नुघन रंग बाया नव खंमा पाशजि पाया ॥ आंकणी ॥ प्रज्नु कमठ हीकुं हगया। विषधर पर जलती काया। दिल दया धरी के गेमाया । सेवक मुख मंत्र सुणाया। दणमें धरणे बनाया ॥ घ॥१॥ में और देवन कुंध्याया। सब फोगट जनम गमाया । सुनो वामाराणीका जाया। कुब परमारथ नहीं पाया ज्युं फुटा ढोल बजाया ॥घ ॥२॥ सुणि चामीकर नरमाया । में पीतल हस्ते पाया। मुजे हुवा बहु सुखदाया। करमोने नाच नचाया। इस विध धके ब- . हु खाया ॥ ५ ॥३॥ घोघा मंडण सुख