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१४७ श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत, ॥ चिं ॥५॥ वीरविजय कदे पाशजी पायोरे ॥ जीरे जब आयारे ॥ उःख विसरायोरे ॥ चिं ॥६॥
इति ॥ समाप्तं ॥ ॥ अथ श्रीपट्टी मंडनपार्श्व जिन
स्तवन ॥ करले पारश संग । प्रनु हे अनंग जंग । कंचन कामनी संग । कमले क्युं थावदाजी ॥ क ॥१॥ मनुष्य जनम आंदा ॥ निंदमें क्युं सोई रेंदा। शुपनशी माया तेनुं । फेर नहीं पावदांजी ॥ क ।। २॥ प्रनु हे पुरनचंद । अश्वसेनराय नंद धन दिन आज सामा । प्रजु घरश्रावदांजी ॥क ॥३॥ शीफत करांमे केती। जिनान तो नांहीरेंदी । सुर गुरु गुण तुं सांदा ।पार नहीं पावदां जी॥ क ॥४॥ मनके मोहन पामी पुरतो