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स्तवनावली.
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विजय मांगे श्रोतम लक्ष्मी मेवा जी माराराज ॥प्रीत ॥११॥
शति श्री सिझाचल स्तवन संपूर्णम्
॥ अथ श्री जिरामंडणचिं
तामणी स्तवन ॥ ॥ राग दादरो ॥ हुमरीनेद ॥ दिलविसरामी चिंतामण खामीरे ॥ टेक ॥ मोहन मुरती पाशजी तोरीरे । अवर न जोमीरे । चितलीयो चोरीरे ॥ चिं ॥१॥ अंतरंगतकी अंतरजामीरे । कहुं शीरनामीरे । सुनो मेरे खामीरे ॥ चिं ॥२॥ मोहरायने मेनुं फुःख दीयारे। सबी लुटलीयारे । जुलमही कीयारे ॥ चिं ॥३॥ तुम विनकौन सुने प्रजु मेरीरे शरणगत तोरीरे ॥ खबर लियो मोरीरे ॥ चिं॥४॥ दासकी आश प्रजु पाशजी पुरोरे ॥ करम सब चुरोरे ॥ बजे जयतूरोरे