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स्तवनावली.
१३ए
जीरानगर खास प्रचु करे निवास मनधरे जे श्राश मीले मोदवास लक्ष्मी के दास वीरविजे एम कहो ॥ प्रन्नु ॥६॥
इति संपूर्ण ॥
॥ अथ श्री जयपुर मंमन ॥ सुमति जिनस्तवन ॥
राग वरवापीतु ॥ साहिवसुमति जिनेश्वरखामी सुणहो कृपानिधि अंतर जामीकालअनादिचहुँगति काडी फीरतां श्रायो मे शरणे तिहारी ॥१॥ गरनावासमे अति दुःख जारी जंधे मस्तक हुवोरे खुवारी।मोदकरमकी हे गती न्यारी जनम मरण नहीं होगतलारी॥ सा ॥२॥ तुमविनकोण करे मुजसारी अब तो लो प्रखबर हमारी। जीव अनंते संसारसें तारी पहोंचाडे प्रनु मुक्तिमोकारी ॥ सा ॥३॥ माहा