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________________ स्तवनावली. १३७ ॥ अथ श्रीकेसरियाजी स्तवन । ॥श्राज वधाई वाजे ॥ए देशी ॥ नगर धुलेवामांही जाई प्रनु आज केसरीयाजी नेट्या ॥ नगर ॥ श्रांकणी ॥ गेटपणेमेखेलताजी तुमहम नवलेवेस त्रिजुवन पदवी तुमेलहीजी हमे सं सारिकेवेस ॥ के॥१॥ अवसरलही श्र वविनकुंजी तुमहो दीनदयाल जे पदवी तुमने लहीजी ते श्रापो महाराज ॥ के ॥२॥ दायक दानदेतां थकांजी नवीकरे ढीललगार शडित हरिचंदन दीएजी तो तुमरी क्या बात ॥ के ॥३॥ समरथ नहीं ते दानमेजी हरी हरादिक देव जोग्य जाण कर जाचीयोजी अबमिलीयो प्रजुमेल ॥ के ॥४॥ सुणी अरजी सेवक तणीजी चितमे चतुर सुजाण आतम लक्ष्मी दिजीएजी वीर विजयकुं दान । के ॥५॥ ॥इति संपूर्ण ॥
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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