SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३६ श्रीमधीरविजयोपाध्याय कृत, ॥अथ श्रीआबुजीशषनजिन स्तवन॥ ॥राग काफी ॥ नेट्यो अर्बुदराजरे थाजसफल घमी नई॥ ने ॥ श्रांकणी॥ नानिनंदजी के दरससरससे पुर गई मिथ्यावास । अनुजव ज्योत नई निजघटमें । त्रुटी नवकी पासरे ॥ था ॥१॥ दिनउद्धार करण तुम सरिखो नही दीठोणसंसार।प्रवहण प्रेरक जिम निरजामक बांग्रही तिमताररे ॥श्रा ॥२॥ चौगति चुरण चौमुख जिनवर अचलगढे मनोहार।दरिसण करकर कुरित नासे पापगये परिहाररे ॥ श्रा ॥३॥ तुम गुण केरा पारनपाउं जिम जलधी हेअगाधाक पवृक्ष चिंतामण बोडके बाउलमा दियो बाथरे ॥श्रा ॥४॥ कोणतीण पलपलनाथ तुमारो ध्यानधरूं सुलतान । तुमगुण मकरंदपानी करकर वीर विजय गु. लतानरे ॥ श्रा॥५॥ इति समाप्तं ॥
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy