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________________ स्तवनावली. १२ए परतनाम || मोरी ॥ कणी ॥ अस्वसेन वामाजीको नंदन वणारसी नगरी मे जनमहाम || मोरी ॥ १ ॥ बालपणमे श्रश्रुतज्ञानी जीवदयाका हो करुणा धाम ॥ मोरी ॥ २ ॥ कष्ट करतो कम समीपे M^^^ ये प्रभुतुमे धारी हाम ॥ मोरी ॥ ३ ॥ काष्टमे ज्वल तो फणी निकाली मंत्रसें दियो प्रभु स्वर्ग धाम ॥ मोरी ॥ ४ ॥ अवसरे दिक्षातपजपसाधी प्रभुजीलीयो तुमे मोक्षधाम || मोरी ॥ ५ ॥ वीरविजयकी एही अरज है हमको हे प्रभु एही काम ॥ मोरी ॥ ६॥ इति श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ अथ श्री वीर जिन स्तवन ॥ राग धन्यासरी ॥ वीरहसें जयोरे उदासी | वीर जिन वीरहसे जयोरे उदासी ॥ टेक ॥ डुषम कालमे दुखियो बोकी ।
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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