________________
-स्तवनावली.
१२७
पनंदीसर जाय ॥ वधा॥४॥प्रातसमय नये अति आनंदसे विजयराय दरवार। धवलमंगल सवगीतनादसे पुत्रवधाश्थाय ॥ वधाश् ॥५॥ सुतक कुलमरजाद करीने नोजन वहु विधकीध । वीरविजय कहे नातजमावी नमिकुमारनाम दीध ॥
वधाई ॥६॥
• ॥ इति श्रीन मिनाथ जिन स्तवन ॥
॥ अथ श्रीनेमनाथ जिन स्तवन । ___रागतुमरी पंजावी ॥ मेरे प्रजुसें एही अरज हे नेक नजर करो दया करी॥ मे॥ श्रांकणी ॥ समुहविजय शीवादेवीनाजाया । ठपन दिगकुमरी दुलराया। अनुक्रमे प्रजु जोवन पाया। परणि नहीं एकनार थवा अनगारके तृष्णा पुरकरी॥ मेरे॥१॥तुमे तो सघली माया तोमी । राजेमती स्त्रीने ठोडी।सहसावनपे रथमो जोडी।गये प्रजु