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२२६ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत, पाय ॥ जि ॥ वीरविजय कहे मेहेर करोतो हमने ते सुख थाय ॥ह ॥१॥५॥ ॥ इति श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन ॥.
॥अथ श्रीनमिनाथ जिन स्तवन॥ " देशी वधाश्नी ॥ आज वधाइ वाजे नगर मथुरांमांही विजय घर। श्राज वधा॥ आंकणी ॥ विप्राराणीये बेटो जायो शुनमुहर्त शुनवार । सोहमसुरपतिचित्त धरी श्रावे विजयराय दरबार ॥ वधा॥१॥मात नमी करी पंचरूप धरी करकमले प्रन्नु लीध। चौसठ सुरपति सुरगिरिरंगे जन्म महोबवकीध ॥ वधा ॥३॥ विधि पूजन करी, अष्ट मंगल धरी गीतगान बहुकीध ।सोना रुपाके फुले वधा जनमको लाहोलीध ॥ वधार ॥३॥ जन्ममहोबव हा करीने जननीपासे लाय।सुरपति सघला महोबव करवा छी.